Sunday, 23 August 2015

जिंदा किसे कहूँ...........मुर्दा किसे कहूँ.......!!!

जिंदा किसे कहूँ...........मुर्दा किसे कहूँ.......!!!

जिंदगी ने ही रुख़ जब मोड़ लिया तो उसको बेवफा क्यू कहूँ,
जिंदादिली भी जनाज़े मे सिमट गए तो जिंदा किसे कहूँ,

हर वक़्त दिया साथ जिसने उसको बेरहम कैसे कहूँ,
नदियाँ ही जब धार मोड़ गई;
तो पतवार की धार को क्यू बुरा कहूँ,..!!!


तूफान आया था समुंदर मे जब; लहरें सहम गई,
आना नही थी चाहती उनकी भी रूह कतर गई,
बेकसूर साबद ही ऐसा है जो बेरहम को भी हिला दे,
सच मानो उसी वक़्त नाव से समुंदर की लहर सिमट गए...!!!


जिंदा उसको कहूँ या जिंदा हमे कहूँ,,
हर राह मे तकदीर जो पलटी; पर्दे मे क्यू रहू
दूर होकर भी पास है अब तो वो मेरे आए मेरे साथियों,
मर गया मै उसके लिए पर सोचता हू मुर्दा उसे काहु....!!!

जिंदा किसे कहूँ...........मुर्दा किसे कहूँ.......!!!

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