उस कोने मे बैठकर जो एकांत सा है,
सोचता था मे अक्सर एक हठीली सी लड़की,
सपने वाली पर कुच्छ गंभीर सी....लड़की
जो सपनो से डरती है...अपनो से डरती है...
कही है वो चुप सी रहती और कम बोलती है...
खुश क्यू हू मे पता है क्या तुम्हे......??
क्यूकी वो मुझसे खुलकर सब कहती है....!!!
अज्जीब सी है उसकी कुच्छ कुच्छ दिक्कतें....
ना जाने कैसे कब मे.....द्दूर सा कर दूँगा....उसको
उसको खुश सा कर दूँगा....ना जाने कब....
खुशिया का छोटा सा लबादा भी उसको गगन सा...
और सूनामी सा बड़ा लगता है गम सा साया जो रहता उसके पास है
डोर होगा वो सब कुच्छ.....सब कुच्छ जो उसे गमगीन सा करता है....
वो अप्सरा है...पता है क्या तुम्हे....
मुस्कान मे उसकी मानो रोशनी है
जो दीप्टमना कर दे अमावस भी....
ऐसी खुशिया भारी है उस खिलखिलाहट मे...उसके...!!!
उस कोने मे बैठकर जो एकांत सा है,
सोचता था मे अक्सर एक हठीली सी लड़की,
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