Monday, 7 September 2015

बोतलें....और वो...!!!


कुसूर-ए-मोहब्बत हम क्यू निकालें;
होश मे हम अब भी है ग़ालिब;
दो चार बोतलें अब असर नही करती!!

दर्द को मिटाने की दवा अगर एन्हि बोतलों मे ही है,
बोल लो उनसे ज़हर हमे वही आकर पीला दें तो अच्छा हे....

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