Monday, 31 July 2017

बेदाग़ रहते तो अच्छा था !!

कुछ राज़ तुम राज़ ही रखते तो अच्छा था,
सच बोलो
सच बोलो
हम ही ने कहा...

पर
तुम बेदाग़ रहते तो अच्छा था !!

हमारी कमज़ोरियों पर परदे डाल डाल कर
वो अपनी हर ग़ुस्ताखियाँ गिनाते गए,

ज़िल्लत भरी हमें जीना आती नहीं थी
पर कुछ ग़म के घूँट हम भी पी गए,

उस रात मानो क़हर यूँ टूटा,
सोचे तो आसमान की थे,
पर ज़मींदोज़ हो गए !!

ऐ क़ब्र तूँ भी आज जश्न मना ले,
कोई आया है हँसते हँसते तेरी राह में
लोगों को हँसाकर....!!

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