आज सालो की प्रतीक्षा कहु
या
विराम जो शायद खुद पर लगाई गई एक तरह की पाबन्दी थी,
या शायद वो भी नहीं...
लेखनी उठाई की चलो वापस चलते है ..
शब्दों को मन के विचार से हटाकर कही लिख देते है..
कागजो न सही तो डिजिटल ही सही
पर भावनाओ को जिक्र करके देखते है ..
कुछ लोग कहेंगे की बोझ हल्का करने लिखो
कुछ कहेंगे की ज्ञान बाटों..
पता नहीं क्या सही है
और क्या गलत
मुकद्दर में क्या लिखा है
क्या नहीं
या लिखा भी है या नहीं
की कवादत कौन ही करे ..
लिख डालो क्युकी वक़्त है अभी
या है नहीं ये भी तो पता नही..
जब ०१/३६५ लिख दिया तो सोचा
अगले पल का भरोषा हुए बिना
३६५ लिखने का दम्भ कहा से आगया
चलो जो भी है ठीक है ..
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