एक बड़े उद्योगपति से मिलने गया ..
घर के बाहर खड़ी लम्बी कारों से लोगों ने अनुमान लगाए थे
उनके बड़े होने के...
बड़ी बड़ी बातों पर उनके तालियां बजाते लोग ..
और स्वयं भू समझने वाले साहब
दम्भ भरते अपने गुड़गान में व्यस्त ....
समाज पर टिपड़्ड़ीयां करते और तंज कसते और पर ,
और पुनः अपनी अपनी अपनी और मै- मै- मै भरी बाटों का सिलसिला ...
उदारता की कहानियों में भी हालाँकि स्वार्थ झलक जाता था ,
पर
जुर्रत किसी पास बैठे इंसान की ... ना ना ना भाई ना
पर सच कहु, बस कुछ ही दिन हुए थे ,
कलई खुलते हुए
रंग बेरंग हो गए आज साहब
उनकी कही बातें
उनके उदारता की किस्से आज
नग्न हो गए थे
उनकी सहयोग की कहानियां आज शर्म से तारतार हो गई होंगी
पर बड़ी बेशर्मी से कैसे लोग
अपनी कही बातों से किनारा काट जाए है...
कलयुग है जनाब !!!