Saturday 17 August 2024

कार एक्सीडेंट….

 पीछे से आती मारुती बलेनो कार ने जोर की टक्कर मारी। #RealLifeStories


शहरों में सिग्नल पर इंतज़ार करती गाड़ियां बंपर से बंपर के बीच कोई फांसला नहीं रखना जानती हैं।  रेडिओ पर चल रहे विज्ञापनों के शोर के बीच थोड़ा ध्यान बदलते चैनलों में पसंदीदा गानों की खोज का होता है।  हालाँकि कभी कभार यूं ही चले रहे कार्यक्रमों जैसे नावेद की दकियानूसी मिर्च मसालों भरे फ़ोन कॉल्स को सुनने का; कभी शहर में होने वाले अगले ग्रैंड शो जिसमे श्रेया घोषाल सिरकत करेंगी या कभी कभार आज कल के रेडिओ को बंद करके अपने पुराने ज़माने वाला आल इंडिया रेडिओ FM गोल्ड लगाने का मन कर जाता है। याद आता है बचपन में जब रेडिओ में फ़ोन करके गानो की फरमाइश करते थे। एक बार मैंने फोन मिलाया और विस्वाश ही नहीं हुआ की रेडिओ में लाइव हु, तब मैंने नदिया के पार मूवी का एक गाना सुनाने की फरमाइश की थी।  तब के उस गाने की फरमाइश को लेकर आज भी कभी कभी शर्मिंदगी से महसूस होती है , कार्यक्रम की एंकर ने तब आश्चर्य जिक्र किया था क्युकी मेरी उम्र तब कुछ 8 साल रही होगी , 


आज वही गाना FMगोल्ड पर चल रहा था, पल भर में कुछ 25 साल पुरानी बातें एक फ्लैशबैक की तरह सामने से गुज़र गई।  


ऑफिस के लिए जाते वक़्त सिग्नल पर किन्नर समुदाय के लोगो का पैसे मांगना कभी अच्छा नहीं लगा।  हालाँकि आजकल समाज में किन्नरों को लेकर स्वीकृति बढ़ गई है, बड़ी बड़ी MNCs भी नौकरी में किन्नरों के लिए अवसर देने लगी हैं, पर ये ऊंट के मुँह में जीरे के सामान ही है, समाज में स्वीकृति बढ़ने के लिए सभी वर्ग के लोगो को साथ आना होगा और सरकार को कदम उठाने होंगे।  पहचान की एक किन्नर ने रोज़ की तरह आज मेरी कार की तरफ कदम बढ़ाये ही थे की सिग्नल खुल गया , उसने हाथ हिलाकर अभिवादन किया ही था कि,,,


भारत में सिग्नल खुलते ही ऐसा प्रतीत होता है कि हम सब को अपने एक एक सेकेंड कि कितनी कदर है, अहमियत तब और बढ़ जाती है जब अंत के कुछ ही सेकण्ड बचते है और हम सब को लगता है कि सिग्नल लाल होने के पहले निकल जाए बस,,।  हालाँकि आजकल जब से श्रींमती जी के साथ जाता हु तो जल्दबाजी नहीं होती वो अलग बात ह। 


सिग्नल खुला, धीरे धीरे बढ़ती गाड़ियों के क्रम से लग नहीं रहा था कि तीसरी बार में भी सफलता मिलने वाली है; जैसे ही मेरी गाड़ी जेब्रा क्रासिंग या स्टॉप लाइन तक पहुँचती, पीछे से हुई जोर कि टक्कर ने १ मिनट के लिए सब रोक सा दिया था।  टक्कर तेज थी, मैंने साथ बैठी मेरी श्रीमती जी से पूछा तुम ठीक तो हो, ऑफिस जाने कि जल्दबाजी में वो कार में ही ब्रेकफास्ट कर रही थी, तेज हुई टक्कर के कारण उसके गले में खाना फस गया था, पानी पीकर आराम मिला, 

तब ध्यान गया कि गाड़ी में उतर कर देखु कितना नुकसान हुआ है,


तब तक में पिछली गाड़ी का मालिक खुद बाहर आकर मुआयना कर रहा था। 


मैंने कहा : क्यों भाई साहब ऐसे कैसे चला रहे हो ,, कैसे ठोंक थी भाई, होश में हो ? इतनी सिग्नल कि क्या जल्दी थी। साथ ही मैंने फोटो खींच ली जो अक्सर इन्शुरन्स कंपनी वाले मांगते है। 


ड्राइवर : सॉरी, मेरी गलती है, जल्दबाजी में था। 


मै : अरे अंकल, सॉरी वगैरह स्कूल में थोड़ी हो कि सॉरी बोलने से काम चल जायेगा। इसको बनवाने में पैसे लगेंगे, बम्पर तो इन्शुरन्स से भी नहीं बनेगा। 


ड्राइवर : ये आप मेरा नंबर रखिये, अभी मै हॉस्पिटल जा रहा हु, मेरी वाइफ को कैंसर है, जल्दी में हूँ, 


मैंने नंबर लिया, सेव किया “एक्सीडेंट अंकल “ और कहा  टेक केयर भाई साहब,।। 


8 - 10 दिन बाद समय मिला कि सर्विस सेंटर में दिखा पाउ, पता चला कि लगभग ४ हज़ार रूपए लगेंगे, मैंने बनाने का आर्डर  दिया और साथ ही “एक्सीडेंट अंकल” को व्हाट्सप्प कर दिया; 


कुछ देर बाद फ़ोन किया तो फोन पर कोई जवाब नहीं, पढ़ा हुआ मैसेज छूटा था, २-३ बार और फ़ोन किया पर कोई जवाब नही।  मैं समझ चूका था कि जवाब नहीं आएगा। 


मैंने एक और मैसेज किया : ठीक है मै पुलिस कम्प्लेन कर देता हु , (मैंने सोचा सायद ये तकनीक काम आये। विश्वास मानिये, अगले १ मिनट में पैसे आगये, मै समझ चुका था कि दुनिया में सीधेपन का कोई रास्ता नहीं बचा है; पोलिसिआ धमकी एक मिनट में रंग लाइ थी।


२ मिनट बाद मुझे एक फोन आता है, वही “एक्सीडेंट अंकल” का,  फ़ोन पर रुधे गले से आवाज़ में पूछा गया, भैया आपको पैसे पहुंच गए, ? मै बोला - हां ,


एक पांच सेकण्ड के सन्नाटे के बाद, मैंने पूछा अंकल , आल वेल ? आप रो क्यों रहे है, 


उन्होंने कहा, याद है उस दिन मैंने आपसे कहा था कि हॉस्पिटल जा रहा हूँ, वाइफ एडमिटेड है, मैंने कहा : जी अंकल , बिलकुल याद है! एक्सीडेंट अंकल ने कहा : आज मेरी वाइफ कि डेथ हो गई, सॉरी आपका फ़ोन आया तो अंतिम संस्कार में था। 


मेरी रूह कांप गई, विस्वास मानिये मेरे शरीर ने जिस शून्यता का अनुभव किया मै व्यक्त नहीं कर सकता !! मैंने क्या नहीं सोचा था, अपनी सोच और कृत्य पर शर्म के आलावा कोई शब्द नहीं थे!! जिंदगी के किस मोड़ पर कौन सा इंसान क्या मजबूरी में है, कौन सा इंसान किस इस्थिति से गुज़ा रहा है, किसी को नहीं पता होता, तो हमें परख करना या नहीं करने में नहीं पड़ना चाहिए। पैसे वापस करके क्या अपनी गलती का पश्चिताप कर पाउँगा, ये भी नहीं पता, पर वापस कर देना उचित समझा ।


ये लेख लिखने तक स्तभ्ध हू,। 


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Sunday 7 August 2022

काश दीवारें बोलतीं !

 काश दीवारें बोलतीं !


मेरे ऑफिस के बगल वाले रेस्टोरेंट की दीवारें मेरे ऑफिस का पूरा गपशप जानतीं और थोड़ा लालच देने पर शायद ऑफिस की चुगलियां करती !


जैसे मेरी बीवी की नाराज़गी का कारण घर की दीवारें ही तो मुझे बतातीं! हाँ हाँ मुझे थोड़ा सा भ्रस्ट बनना पड़ता क्युकी कलयुग में कुछ काम फ्री में हो पाना नामुमकिन जो है। 


अक्सर मैंने ये सोचा, बेजुबान इमारतें, या कुछ जीव जंतु जो सामान्यतः बोलते नहीं, उनको कितनी घुटन होती होगी ना ? अपने अनुभव और अहसास को बता पाना, एक वरदान से कम नहीं।  फिर हम इंसान क्यों नहीं बतातें ? जिनसे हम इतना प्यार करते हैं या फिक्र करते हैं जिनकी, उनसे जिक्र करने में क्यों कतराते है ?


ओह, हाँ दीवारों से भी हमने अच्छी बातों की जगह केवल चुगलियों की अपेक्षा की थी! अब समझा ?  

Tuesday 28 April 2020

अब जी कतराता है .. #CORONA


लक्षण तो नहीं कुछ मुझमे कोरोना के...
ये देखने
खुद को आईने में अब निहारता हूँ
बालों को सही जगह करने नहीं
बल्कि खुद पर एक तरह की नज़र रखने

मन सहम जाने लगा
जब बेचैनी सी होती है कभी
खुद से बातें करना आने लगा
सात दस फिर महीने तक लॉक डाउन
बढ़ते जा रहे समय और सख्त होते कानून

वो कहते हैं घर से ही काम करना नया चलन है
आज मैं काम में कैसे दक्षता दिखाऊ
परेशांन हूँ मैं अप्रत्याशित दुश्मन का बढ़ता आयाम देखकर
टूटते तंत्र और टूटते अरमान देखकर

आज सब भूलकर बाहर एक बार घूम आने को जी चाहता है
मरने के पहले इंसान जी भर कर जी लेना चाहता है
मेरे टूटे अरमानो अब मुझे अलविदा कहो
इस तरह की दुनिया से अब जी कतराता है 

Sunday 5 April 2020

Corona - कोरोना - आपदा है सदी की भयंकर, कवि कहानी नहीं कह रहा है

जब बंद हैं सड़कें, दुकान, गाड़ियां और कामकाज
घर में रहें तो रहें ,,,, कैसे बिताएं समय
ऐसे में खुल रहे लोगो के अंदरूनी - राज

इस कोरोना वायरस ने ठान सी ली है मन में कुछ ऐसी
सबक सीखने को मानवता को कई अजीबो-गरीब चीजों की
कोई कहता है प्रदूषण कम हुआ है और
पर्यावरण की बात करता है
तो कोई भूंखे खरीबों के दर्द को बयां करता है

आज कई हाथ खड़े हो रहे हैं सहयोग को
तो कई नियम कानून तोड़ कर कर पता नहीं क्या जाताना चाहते हैं

मानवता के भविष्य का पता नहीं है ...
आपदा है सदी की भयंकर... पर कोई यकीन क्यों नहीं कर रहा है !!

मानो या ना मानो पर हकीकत यही है .... कवि कहानी नहीं कह रहा है  !! 

Friday 20 July 2018

Mazboor hu Mai

ye kya kar raha hu mai
apno se jhagad raha hu....

Khud se to kab se ladai hai meri,
rutha khud se hu zamane se nahi,
farak padene se door hu mai

ye kya kar raha hu mai
aaj apno se mazboor hu mai!!

Thursday 12 April 2018

Tuesday 27 March 2018

Goa...A Trip to remember !!

A Trip to remember -- Goa!!

A journey to break the rules or to stay up with the ideology! A journey to understand what I need and what exactly is called the luxuries!

And here on forth the trip to GOA starts.
I am writing this writing on the very first night and start of travel being in THE AIR...air India it is! I am noway less excited than people who pray for a baby for years and the day comes when the lady gives birth to a new human body! In a way this journey is similar, we lived a trip to GOA in dreams always, when I go long back I have heard about Goa from family friends who either went on abmuja cement's dealer's free trip or in college time when some rahisjaade had succeeded to make the middle-class sons and daughters jealous. Although in my part of world girls were almost restricted to travel for Goa with their friends who have done mistakes of being male from birth. In post graduate time what I believe was it was sometimes money and many a times tight schedule and pressure of career building never allowed to fulfil ever dream Goa trip. I swear this is the trip which was tempted by Bollywood in such a way that when 3 friends will sit and plan, they will end up with dil chahta hai song, a car trip and beaches of Goa with best of the buddies.
although this much anxiousness and wish to visit "the place" was always on peak and never faded but to realize this short of dream some day ago when Navlok said that- 'yaar tumhare sath kabhi Goa Jana hai!' it touched somewhere with yield of wish to make this happen soon. And within one or two day all necessaries tickets and plans started rolling in our Whatsapp conversations, we gradually booked airways tickets. In this era when time is important and it's an investment in many sense, I prefer to travel through means and ways which saves time, likes airlines over railways and direct connectivity over the layover flights. I am not denying on the pleasure of Indian railways journey but time comes when you find another pleasure of business class lounge and first class flight travels. Discussion on hotel and places of visit in Goa was a concern. We have proved in a way that we are smarter in this social media era where power of internet is not ignorable. Nowadays websites like "travel triangle" and "trip advisor" are providing quotations for your selected locations. Although we were sure that we are going to explore on our own but what's bad in taking quotations and making ourselves more clear and clever selections.

This has not ended here, I asked to my friends who visited Goa recently and also suggestions were asked from friend cum business partner Joseph M. He sent a mail with list of places, beaches and more importantly discos-pubs-casino-bars. More importantly my attention went to the trailing mail to the same which was sent by a lady. Navlok and me were sharing the links though mail for the places we can visit. It was all together different experience for a person like me who always went on trips without plan, spontaneously taking divisions was became hobby and i was living the same. But since this trip was altogether a dream trip of young generation which was being fulfilled even after crossing silver jubilee of life age, this should have been much more important than any random trip.
You would be surprised if reading that searching hotels in Goa was not just tempting but also dreamful and sometimes seductive too. Most of the beach fronted five star hotel offers lovely honeymoon packages with yatch and lovely facilities. But only men trip tries to drag us from selecting five star to three star or apartments with affordable rates, still we managed to book the vivanta by Taj holiday village hotel. Excitement more increased to feel the luxury onwards. I have been stayed to five stars quiet some times but never opted to check-in officially in Facebook n Instagram. Nowadays I do not know why people boats about their personal life high standards to FB or insta! Like every flight check-in at airport happens prior to board in, like omg yes I paid freakishly charged ticket so now I am eligible to have this on my wall. It's all about people's choice, and why I am saying this, I am never less in these activities, but yes these thoughts do come and crunch my mind many of the times that why my personal life is much socialised! Why people should know where am I or what am I doing!! But suddenly this disappears like shallow root trees floats with flood soon, also I can not deny the attraction and power of social media!
now the main task was rest, yes "The people".

My friends whom I want in this trip, Navlok was ready, to prepare Rahul for trip was not easy since he is job seeker nowadays, sometimes it's like his time is important and sometimes when he doesn't have interviews etc it's like he is all free for us to join in trip. He must be excited enough and yes he does shared in Whatsapp also that he is more excited coz it's his first air travel, some emotional too starting with Air INDIA. Finally we three booked, Rahul, Navlok and Awanish! Main task in my head was convincing the topper friend (Manas) agreeing for the trip. I stayed with Manas for four important years of engineering life is same room being room-met, he is balanced guy with amazing mind, nowadays this topper is pursuing PhD from his IIT madras, it means he must have reached another level again. I always have problem with toppers coz they think much for their decision, I know I must not have problem in this as it's their personal choice, but still who am I than another common man who comments on personal choices of people where no strings are connected to step in even. I respect Manas for hell lot of reasons and I was always aware that he is special god gifted child, I can say this with the base of my four years with him. That's why I told it was not easy for me fit strategy in better way to make him available for the trip. Indeed it was enjoyable too as I was enjoying the process. A Whatsapp group was made and named as Goa 8-12 Sept! Here I am not revealing how I convinced Manas and how strategy worked! But important is to say and accept that he is coming being ill/sick too. His sickness is something that too I can not disclose here. Important is now it's we four people and Goa plan is ready.

The group which I refer will miss three more people, Manchi is in Australia so he can't come, Aditya was really expected to join us but he is manager for product launch on same dates in TCS Gandhinagar, Mr. Dhanaji is preparing for civil services and he is such dedicated individual who rarely see his phone nowadays (some praise this but I call it madness). This trip will miss these three if not much but still enough to recall them at beach side or at late night dinners with much awaited booze parties.
Organization which I worked, schools and colleges where I studied, always it was the same case that they declare holidays just one day before holiday starts; in the hope that less people will go on long holidays or I never understood their logic in it. Happened many times and now I feel that bad luck is the word dictionary selected for me! Eid holidays shifted and days on which would be traveling to Goa are working days now! It was like saying- FUCK!!!!! That too loudly in office corridor! People who takes much leaves like me and every month or another month they will stand in front of projects director for leave; I could understood the feeling of the sanctioning authorities! But I would say god grace that they didn't stop my visit! Leave approved!!! When I get signatures on leave form (although unpaid) I feel like winning something, then indeed I understand that I have good convincing power which is also the need of the hour for roles and responsibilities which I deal for the organization. This hereby another hurdle down and excitement on peak with online check-in.

And here when journey started, I felt that yes it's air India, three times gates changed, from 2 to 20 then afterwards 27; I realised it coz all these gates were at different ways! A big mess, 200 people running her to there for Gate change. And when I am sitting comfortably and writing all this, I can not forget the Dilemma!!!  During dining time in aircraft suddenly the beautiful air-hostess asks the choice of drink? With all yes-Nooo--yesss---Noooooo!!! Areyyyy Yesssssssss--- Nopeeee!!! Tongue pronounced- Not here! She- pardon! Me- soft drink please! Meanwhile analyzing, oh god is it like only me not taking choices of alcoholic beverages. My choice became Coca-Cola finally!!


The destination, the new place, or a memorable or ordinary here how can I say, but a trip with lovely friends awaiting, and I am full of curiosity to feel the moments and store them in minds and hearts for long.

Here Now you wait for another writing...may be when The trip is over...

Saturday 23 September 2017

Unki Yaadon se Fursat...??


Mere Halat ka andaza tere hawale...


GUroor unka mohabbat meri....


Tajurba....Suno...


Padh sako to padh lo mera Chehra...


Unki aankho karti hai Samvaad hai agar..


Usne aaj koi Shayri nahi likhi...


Hamari Khamiyon me Parde Daal vo pyaar Lutati rahi,,,,


Pyaar Ke Izhar se kinara kasne waali..


Aao Samet len jo bhi Yaaden hai..


Unhone Saza Diye...


Ittefak nahi Etraz-E-Mohabbat Yaaron...


Azanabi Logon par Kijiye Bharosha...


कार एक्सीडेंट….

 पीछे से आती मारुती बलेनो कार ने जोर की टक्कर मारी। #RealLifeStories शहरों में सिग्नल पर इंतज़ार करती गाड़ियां बंपर से बंपर के बीच कोई फांसल...