पीछे से आती मारुती बलेनो कार ने जोर की टक्कर मारी। #RealLifeStories
शहरों में सिग्नल पर इंतज़ार करती गाड़ियां बंपर से बंपर के बीच कोई फांसला नहीं रखना जानती हैं। रेडिओ पर चल रहे विज्ञापनों के शोर के बीच थोड़ा ध्यान बदलते चैनलों में पसंदीदा गानों की खोज का होता है। हालाँकि कभी कभार यूं ही चले रहे कार्यक्रमों जैसे नावेद की दकियानूसी मिर्च मसालों भरे फ़ोन कॉल्स को सुनने का; कभी शहर में होने वाले अगले ग्रैंड शो जिसमे श्रेया घोषाल सिरकत करेंगी या कभी कभार आज कल के रेडिओ को बंद करके अपने पुराने ज़माने वाला आल इंडिया रेडिओ FM गोल्ड लगाने का मन कर जाता है। याद आता है बचपन में जब रेडिओ में फ़ोन करके गानो की फरमाइश करते थे। एक बार मैंने फोन मिलाया और विस्वाश ही नहीं हुआ की रेडिओ में लाइव हु, तब मैंने नदिया के पार मूवी का एक गाना सुनाने की फरमाइश की थी। तब के उस गाने की फरमाइश को लेकर आज भी कभी कभी शर्मिंदगी से महसूस होती है , कार्यक्रम की एंकर ने तब आश्चर्य जिक्र किया था क्युकी मेरी उम्र तब कुछ 8 साल रही होगी ,
आज वही गाना FMगोल्ड पर चल रहा था, पल भर में कुछ 25 साल पुरानी बातें एक फ्लैशबैक की तरह सामने से गुज़र गई।
ऑफिस के लिए जाते वक़्त सिग्नल पर किन्नर समुदाय के लोगो का पैसे मांगना कभी अच्छा नहीं लगा। हालाँकि आजकल समाज में किन्नरों को लेकर स्वीकृति बढ़ गई है, बड़ी बड़ी MNCs भी नौकरी में किन्नरों के लिए अवसर देने लगी हैं, पर ये ऊंट के मुँह में जीरे के सामान ही है, समाज में स्वीकृति बढ़ने के लिए सभी वर्ग के लोगो को साथ आना होगा और सरकार को कदम उठाने होंगे। पहचान की एक किन्नर ने रोज़ की तरह आज मेरी कार की तरफ कदम बढ़ाये ही थे की सिग्नल खुल गया , उसने हाथ हिलाकर अभिवादन किया ही था कि,,,
भारत में सिग्नल खुलते ही ऐसा प्रतीत होता है कि हम सब को अपने एक एक सेकेंड कि कितनी कदर है, अहमियत तब और बढ़ जाती है जब अंत के कुछ ही सेकण्ड बचते है और हम सब को लगता है कि सिग्नल लाल होने के पहले निकल जाए बस,,। हालाँकि आजकल जब से श्रींमती जी के साथ जाता हु तो जल्दबाजी नहीं होती वो अलग बात ह।
सिग्नल खुला, धीरे धीरे बढ़ती गाड़ियों के क्रम से लग नहीं रहा था कि तीसरी बार में भी सफलता मिलने वाली है; जैसे ही मेरी गाड़ी जेब्रा क्रासिंग या स्टॉप लाइन तक पहुँचती, पीछे से हुई जोर कि टक्कर ने १ मिनट के लिए सब रोक सा दिया था। टक्कर तेज थी, मैंने साथ बैठी मेरी श्रीमती जी से पूछा तुम ठीक तो हो, ऑफिस जाने कि जल्दबाजी में वो कार में ही ब्रेकफास्ट कर रही थी, तेज हुई टक्कर के कारण उसके गले में खाना फस गया था, पानी पीकर आराम मिला,
तब ध्यान गया कि गाड़ी में उतर कर देखु कितना नुकसान हुआ है,
तब तक में पिछली गाड़ी का मालिक खुद बाहर आकर मुआयना कर रहा था।
मैंने कहा : क्यों भाई साहब ऐसे कैसे चला रहे हो ,, कैसे ठोंक थी भाई, होश में हो ? इतनी सिग्नल कि क्या जल्दी थी। साथ ही मैंने फोटो खींच ली जो अक्सर इन्शुरन्स कंपनी वाले मांगते है।
ड्राइवर : सॉरी, मेरी गलती है, जल्दबाजी में था।
मै : अरे अंकल, सॉरी वगैरह स्कूल में थोड़ी हो कि सॉरी बोलने से काम चल जायेगा। इसको बनवाने में पैसे लगेंगे, बम्पर तो इन्शुरन्स से भी नहीं बनेगा।
ड्राइवर : ये आप मेरा नंबर रखिये, अभी मै हॉस्पिटल जा रहा हु, मेरी वाइफ को कैंसर है, जल्दी में हूँ,
मैंने नंबर लिया, सेव किया “एक्सीडेंट अंकल “ और कहा टेक केयर भाई साहब,।।
8 - 10 दिन बाद समय मिला कि सर्विस सेंटर में दिखा पाउ, पता चला कि लगभग ४ हज़ार रूपए लगेंगे, मैंने बनाने का आर्डर दिया और साथ ही “एक्सीडेंट अंकल” को व्हाट्सप्प कर दिया;
कुछ देर बाद फ़ोन किया तो फोन पर कोई जवाब नहीं, पढ़ा हुआ मैसेज छूटा था, २-३ बार और फ़ोन किया पर कोई जवाब नही। मैं समझ चूका था कि जवाब नहीं आएगा।
मैंने एक और मैसेज किया : ठीक है मै पुलिस कम्प्लेन कर देता हु , (मैंने सोचा सायद ये तकनीक काम आये। विश्वास मानिये, अगले १ मिनट में पैसे आगये, मै समझ चुका था कि दुनिया में सीधेपन का कोई रास्ता नहीं बचा है; पोलिसिआ धमकी एक मिनट में रंग लाइ थी।
२ मिनट बाद मुझे एक फोन आता है, वही “एक्सीडेंट अंकल” का, फ़ोन पर रुधे गले से आवाज़ में पूछा गया, भैया आपको पैसे पहुंच गए, ? मै बोला - हां ,
एक पांच सेकण्ड के सन्नाटे के बाद, मैंने पूछा अंकल , आल वेल ? आप रो क्यों रहे है,
उन्होंने कहा, याद है उस दिन मैंने आपसे कहा था कि हॉस्पिटल जा रहा हूँ, वाइफ एडमिटेड है, मैंने कहा : जी अंकल , बिलकुल याद है! एक्सीडेंट अंकल ने कहा : आज मेरी वाइफ कि डेथ हो गई, सॉरी आपका फ़ोन आया तो अंतिम संस्कार में था।
मेरी रूह कांप गई, विस्वास मानिये मेरे शरीर ने जिस शून्यता का अनुभव किया मै व्यक्त नहीं कर सकता !! मैंने क्या नहीं सोचा था, अपनी सोच और कृत्य पर शर्म के आलावा कोई शब्द नहीं थे!! जिंदगी के किस मोड़ पर कौन सा इंसान क्या मजबूरी में है, कौन सा इंसान किस इस्थिति से गुज़ा रहा है, किसी को नहीं पता होता, तो हमें परख करना या नहीं करने में नहीं पड़ना चाहिए। पैसे वापस करके क्या अपनी गलती का पश्चिताप कर पाउँगा, ये भी नहीं पता, पर वापस कर देना उचित समझा ।
ये लेख लिखने तक स्तभ्ध हू,।
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