लक्षण तो नहीं कुछ मुझमे कोरोना के...
ये देखने
खुद को आईने में अब निहारता हूँ
बालों को सही जगह करने नहीं
बल्कि खुद पर एक तरह की नज़र रखने
मन सहम जाने लगा
जब बेचैनी सी होती है कभी
खुद से बातें करना आने लगा
सात दस फिर महीने तक लॉक डाउन
बढ़ते जा रहे समय और सख्त होते कानून
वो कहते हैं घर से ही काम करना नया चलन है
आज मैं काम में कैसे दक्षता दिखाऊ
परेशांन हूँ मैं अप्रत्याशित दुश्मन का बढ़ता आयाम देखकर
टूटते तंत्र और टूटते अरमान देखकर
आज सब भूलकर बाहर एक बार घूम आने को जी चाहता है
मरने के पहले इंसान जी भर कर जी लेना चाहता है
मेरे टूटे अरमानो अब मुझे अलविदा कहो
इस तरह की दुनिया से अब जी कतराता है